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विशिष्ट वक्ता-०९.०८.२०२५

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आज केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा तेलंगाना राज्य के गुरुकुलम विद्यालय के स्नातकोत्तर (पीजीटी) हिंदी अध्यापकों के लिए आयोजित ऑफलाइन नवीकरण पाठ्यक्रम प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत हिंदी शिक्षण में प्रौद्योगिकी का प्रयोग (कृत्रिम मेधा के विशेष संदर्भ  में ) एवं हिंदी में रोजगार  विषय पर ‘विशिष्ट वक्ता’ के रूप में व्याख्यान देने का अवसर प्राप्त हुआ।  संस्थान एवं शिक्षकों का  विशेष धन्यवाद।  #हिंदी #शिक्षण #teaching #साकेत_विचार

प्रेमचंद जी का जयशंकर प्रसाद जी के नाम

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प्रेमचंद की जयंती पर उनका एक पत्र पढ़िए जो जयशंकर प्रसाद के नाम है। उन दिनों प्रेमचंद मुंबई में थे और फ़िल्मों के लिए लेखन कर रहे थे- ====================== अजंता सिनेटोन लि. बम्बई-12 1-10-1934   प्रिय भाई साहब, वन्दे! मैं कुशल से हूँ और आशा करता हूँ आप भी स्वस्थ हैं और बाल-बच्चे मज़े में हैं। जुलाई के अंत में बनारस गया था, दो दिन घर से चला कि आपसे मिलूँ, पर दोनों ही दिन ऐसा पानी बरसा कि रुकना पड़ा। जिस दिन बम्बई आया हूँ, सारे रास्ते भर भीगता आया और उसका फल यह हुआ कि कई दिन खाँसी आती रही। मैं जब से यहाँ आया हूँ, मेरी केवल एक तस्वीर फ़िल्म हुई है। वह अब तैयार हो गई है और शायद 15 अक्टूबर तक दिखायी जाय। तब दूसरी तस्वीर शुरू होगी। यहाँ की फ़िल्म-दुनिया देखकर चित्त प्रसन्न नहीं हुआ। सब रुपए कमाने की धुन में हैं, चाहे तस्वीर कितनी ही गंदी और भ्रष्ट हो। सब इस काम को सोलहो आना व्यवसाय की दृष्टि से देखते हैं, और जन-रुचि के पीछे दौड़ते हैं। किसी का कोई आदर्श, कोई सिद्धांत नहीं है। मैं तो किसी तरह यह साल पूरा करके भाग आऊँगा। शिक्षित रुचि की कोई परवाह नहीं करता। वही औरतों का उठा ले जाना, बलात्...

हिंदी का अर्थ

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  अक्सर सुनते है हिंदी फ़ारसी भाषा का शब्द है। हिन्द शब्द फारसी भाषा का ही है। फारसवालेआज के दक्षिणी पंजाब से दिल्ली तक के प्रदेश को हिन्द और सरहिन्द कहते थे,वहाँ की एक नदी को  भी हिन्द (आज का हिन्दन) कहते थे।और वहाँ की भाषा को हिन्दुई,हिन्दवी और हिन्दी कहा करते थे। फारसी में शेष पंजाब को मद्र न कहकर पंजाब कहते थे। बाद में भारतीयों ने भी,सतरहवीं ई० शताब्दी से ,मद्र नाम का त्याग कर मद्र को पंजाब लिखना पढ़ना आरम्भ कर दिया। पर हिंदी भाषा आर्यभाषा, अपभ्रंश, लौकिक संस्कृत के रूप में उत्तर वैदिक काल से ही अस्तित्व में रही। ईरानी और फारसी में " ह “ का उच्चारण नहीं होता है । इसके स्थान पर " स “ का उच्चारण होता है । सिन्धु नदी के पार के क्षेत्र को “ हिन्दूकुश “ कहा जाता है । मुग़ल बादशाहों के आने के बाद यहाँ बोली जाने वाली भाषा को हिन्दी, हिन्दवी कहा गया । उनके आने के पूर्व यहाँ बोली जाने वाली भाषा को " भाखा “ कहा जाता था । संस्कृत हैं कूप जल  भाखा बहता नीर -कबीर दास अत: हिंदी शब्दमात्र फारसी है, भाषा हमारी संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रन्श से यहाँ तक पहुँची है इस बात को सभी को जा...

तर्क और प्रज्ञा का संबंध

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आज एक समूह में तर्क पर बहस हो रहा था । मेरे मन में तर्क से आगे ‘प्रज्ञा’ के संबंध में कुछ भाव उपजें, जिसे आप सभी से साझा कर रहा हूँ। तर्क और प्रज्ञा का संबंध - तर्क जिसे हम अंग्रेजी में लॉजिक या रीजनिंग के नाम से जानते हैं । पश्चिमी परंपरा तर्क में विश्वास करती है । इसीलिए आज की शिक्षा पद्धति तर्कवादी बनाने में अधिक विश्वास करती है । यहीं कारण है कि हम सब हर चीज में अंतहीन तर्क ढूंढते हैं और निष्कर्ष भी अपने संज्ञान में विद्यमान तथ्यों और नियमों के आधार पर  निकालते हैं । विद्वान तर्क को बौद्धिक प्रक्रिया मानते हैं जिसमें भावनाओं, नैतिकता या अनुभव का स्थान कम होता है।इसीलिए आज चार किताबें पढ़कर लोग विद्वान हो जाते हैं। भारतीय ज्ञान पद्धति शिक्षित व्यक्ति को ही ज्ञानी नहीं मानती। कबीरदास जी ने कहा भी है “पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। “ तर्क में केवल तथ्यों पर आधारित हम निष्कर्ष निकालते हैं। तर्क से आगे की प्रक्रिया है -प्रज्ञा जिसे हम अंग्रेजी में विजडम कहते हैं ।  प्रज्ञा या विजडम में व्यक्ति अनुभव, ज्ञान, तर्क, नैतिकता और करुणा को...

चंद्रशेखर आजाद

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  आज महान स्वाधीनता सेनानी, क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती है।  उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा या भाबरा गाँव में हुआ था। चन्द्रशेखर तिवारी उनका असली नाम था। उन्होंने काशी विद्यापीठ, बनारस में  शिक्षा प्राप्त की। वे क्रांतिकारी स्वतंत्रता आंदोलन के हिस्सा रहें और विरोध के लिए हिंसक तरीकों का सहारा लेने के लिए जाने जाते थे।  उनका प्रसिद्ध नारा था -  “मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा” ।  उनका एक और प्रसिद्ध संदेश था- मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वाधीनता है और मेरा घर जेलखाना है। - मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ता रहूंगा। - मेरा यह छोटा- सा संघर्ष ही कल के लिए महान बन जाएगा। - सच्चा धर्म वही है जो स्वतंत्रता को परम मूल्य की तरह स्थापित करे।‘’

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस-२३ जुलाई

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  आज राष्ट्रीय प्रसारण दिवस है। भारत की प्रसारण यात्रा जून 1923 में बॉम्बे रेडियो क्लब के पहले प्रसारण के साथ शुरू हुई। 23 जुलाई, 1927 को इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) की स्थापना हुई, जिसने देश में संगठित रेडियो प्रसारण की शुरुआत की। इस दिन को अब राष्ट्रीय प्रसारण दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की शुरुआत 1936 में भारतीय राज्य प्रसारण सेवा से हुई थी। आज़ादी के बाद, आकाशवाणी का तेज़ी से विस्तार हुआ और 1956 में इसे "आकाशवाणी " नाम दिया गया। आज, यह 591 स्टेशनों का संचालन करता है, जो भारत की 98% आबादी तक पहुँचता है और 23 भाषाओं और 146 बोलियों में प्रसारण करता है। भारत के विकास में प्रसारण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, रेडियो सूचना के प्रसार और एकता को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम था। स्वतंत्रता के बाद, यह साक्षरता, स्वास्थ्य जागरूकता और कृषि ज्ञान को बढ़ावा देने में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। #आकाशवाणी #साकेत_विचार विशेष संदर्भ के लिए देखें  https://notnul.com/Pages/Book-Details.aspx?S...

लोकमान्य तिलक

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 ‘’ आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार और प्रयास संवैधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी सफलता निश्चित है ।” - लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आज स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई 1856 - 1 अगस्त 1920) की जयंती है।    लोकमान्य तिलक, जिन्हें गांधीजी ने "आधुनिक भारत का निर्माता" और नेहरू जी ने "भारतीय क्रांति का जनक" कहा। लेकिन देश की जनता ने उन्हें दिल से अपनाया और "लोकमान्य" कहा।‘’ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखने में मुख्य भूमिका निभाने वाले उनके सबसे लोकप्रिय नारे के बिना अकल्पनीय है: 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।' ने दिया था।  तिलक की विरासत स्वशासन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से चिह्नित है, जिसने महात्मा गांधी जैसे भविष्य के नेताओं को प्रेरित किया। 1 अगस्त, 1920 को उनका निधन हो गया, उसी दिन गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, जो भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में उनके स्थायी प्रभाव का प्रमाण है। लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए देश भर में चार स...